वीडियो जानकारी:
शब्दयोग सत्संग
२९ अक्टूबर २०१४
अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा
अध्याय ३,सूत्र ४(अष्टावक्र गीता)
श्रुूूत्वापि शुद्धचैतन्य आत्मानमतिसुन्दरं ।
उपस्थेऽत्यन्तसंसक्तो मालिन्यमधिगच्छति ||
अध्याय ११, सूत्र ६(अष्टावक्र गीता)
नाहं देहो न मे देहो बोधोऽहमिति निश्रच्यी ।
कैवल्यं इव संप्राप्तो न स्मरत्यकृतं कृतम् ॥
दोहा:
दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार |
तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार || (संत कबीर)
प्रसंग:
जीवन में शरीर का कितना महत्त्व है?
शरीर का वास्तविक उपयोग क्या है?
शरीर को पूर्ण उपयोगी कैसे बनाएं?